
बेवफाई आजकल फैशन बन रही है, खासकर जब यह रिश्तों के बारे में हो। यह जानते हुए भी कि विश्वास की दहलीज पार करने के बाद हम किसी और को नहीं, बल्कि खुद को ही धोखा दे रहे हैं, हम इस गलती के हक़ में वोट देते हैं। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि सर्वेक्षण का हिस्से बने लगभग एक तिहाई शादीशुदा जोड़ों के नाजायज संबंध हैं। इस लेख के माध्यम से हम शादीशुदा जोड़ों के नाजायज संबंध और इसके पीछे के कारणों के बारे में बात करेंगे।
जहाँ तक भारतियों की बात है, तो इस विषय में मिलीजुली राय है। कुछ लोग इसे पाप मानते हैं, और कुछ के मुताबिक यह मौजूदा रिश्ते में कड़वाहट का एक नतीजा है।
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हम इंसान हैं, और हम अपनी ही शर्तों पर प्यार और देखभाल की मांग करते हैं। फिर चाहे बात पलिगमी (कुछ समाजों में एक रिवाज है, जहाँ एक विवाहित आदमी कानूनी रूप से एक से अधिक विवाह कर सकता है) या पॉलीऐन्ड्री अर्थात बहुपतित्व (जहाँ एक विवाहित औरत कानूनी रूप से एक से अधिक विवाह कर सकती है), दोनों के आंकड़े बढ़ रहे हैं और हमारे संबंधों को दीमक की तरह अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं।
अब, ऐसे में मुख्य अपराधी कौन है? सवाल टेबल-टेनिस पर उछल रही एक बॉल जैसा है; जब पति से पूछा जाता है, तो वह पत्नी की ओर उछाल देता है और जब पत्नी से पूछा जाता है, तो वह पति की ओर उछाल देती है। यह खेल तब तक चलता रहता है, जब तक कोई एक अपनी बारी नहीं चूक जाता अर्थात पकड़ा जाता है।
अगर आप रिश्तों के विशेषज्ञ से इस बारे में पूछेंगे, तो उनके अनुसार, पति और पत्नी, दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं। ध्यान रहे, एक हाथ से ताली बजाने के लिए दो लोगों की जरूरत है।
अन्य खेलों के विपरीत, यह एक ऐसा खेल है, जिसमे खेलने वाला हमेशा हारता है। भरोसे की दहलीज को पार करने वाला इंसान, रिश्ते की पवित्रता को भी भंग कर देता है और ऐसे में उसे माफ करना नामुमकिन हो जाता है।
अब कोई इंसान इस सीमा को क्यों लांघता है, इसके पीछे भी कई कारण हो सकते हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि जिस इंसान को कुछ समय अपना जीवनसाथी स्वीकार किया हो, उसी को धोखा देना इतना आसान कैसे हो सकता है? इस बात का साधारण सा जवाब है – जिद्दीपन। हम अपने आस-पास के हर व्यक्ति को बदलना चाहते हैं, लेकिन खुद को नहीं।
लोग समाधान की तलाश करते हैं, लेकिन वास्तविक में, कारण ही समाधान होते हैं। कहीं और जाकर समाधान ढूंढने से बेहतर है आत्म-मूल्यांकन करना।
सही कारण के लिए विवाहित होना
जब तक आप विवाह के पीछे के सही उद्देश्य को समझ नहीं लेते, तब तक शादी न करें। ज्यादातर समय, लोग गलत कारणों से या फिर परिवार के ज्यादा जोर डालने पर शादी का फैसला ले लेते हैं। लेकिन, यह बिलकुल भी ठीक नहीं है।
जाहिर है, अगर आप दबाव में कुछ करते हैं, तो आप लंबे समय तक उस किरदार में टिके नहीं रह पाएंगे। चाहे फैसला शादी का हो या कुछ और, अगर आप पूरे मन से उस फैसले के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको एक दिन खेद होगा।
अगर आप किसी को सिर्फ इसलिए पसंद करते हैं कि आपको कहा गया है, तो याद रखें, जिस दिन आपको वह शख्स मिलेगा, जो आपको पसंद है, तो उसे पाने के लिए आप अपनी सीमाओं को अवश्य पार करेंगे।
संलग्न और संशोधन करना सीखें
निर्विवाद रूप से, जीवन हर दिन बहुत सारी चुनौतियां देता है। कुछ हद तक, लोग उन लोगों से निपटने का प्रयास भी करते हैं, लेकिन कभी-कभी यह चुनौतियां ऐसी बन जाती हैं, जो लंबे समय तक चलती हैं, जैसे कि वित्तीय संकट, गंभीर बीमारी, इत्यादि। इन मामलों में अक्सर लोग रिश्ते तोड़ देते हैं और दूसरों से रिश्ते बना लेते हैं।
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ऐसी परिस्थितियों में, शादीशुदा जोड़े का किसी नाजायज रिश्ते की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है। ऐसे मामलों में अपनों का साथ छोड़ने के बजाय, उनको अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन, हम अपनी इंद्रियों के गुलाम होकर वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा इन्द्रियाँ हमसे चाहती हैं।
कुछ पति-पत्नी माता-पिता बनने के बाद ज्यादा परेशान हो जाते हैं
माता-पिता बनना वास्तव में कुछ जोड़ों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। माता-पिता बनने के बाद आपकी प्राथमिकताएं बदलती हैं क्योंकि अब आपको अपने समय का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चे में बांटना पड़ता है, खासकर वह हिस्सा, जो पहले आप अपने साथी से बांटते थे। ऐसे में रिश्तों में कड़वाहट आना स्वाभाविक है।
जबकि पत्नियां माँ की भूमिका निभाने में व्यस्त हो जाती हैं, पति उन लम्हों को याद करके उदास होने लगते हैं, जो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ बिताए थे। बहुत से मामलों में नाजायज रिश्तों के पीछे प्रमुख कारण महत्वहीन महसूस करना है।
अपनी प्राथमिकताओं को स्थानांतरित करना ठीक है, लेकिन किसी को उन्हें पूरी तरह से बदलना नहीं चाहिए अर्थात नए रिश्तों को जोड़ना और पुरानों को छोड़ना।
शारीरिक और भावनात्मक असंतोष
अगर शारीरिक असंतोष होगा, तो चाहे आदमी हो या औरत, उनका भरोसे की सीमा को लांगना तय होता है। मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं, जहाँ पति पत्नी में घर के खर्चों के अलावा कोई और चर्चा नहीं होती।
रिश्तों में भावनाओं की अहमियत को समझने के लिए किसी ख़ास प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती। आपको बात करने, सुनने और दो पल साथ बैठकर हसने की ज़रूरत होती है। अपने साथी को दिखाएं कि आपको उसकी परवाह है क्योंकि ऐसा करके आप उससे ज्यादा आसनी से जुड़ पाएंगे। याद रखें, हम सभी एक भावनात्मक रोलर कोस्टर सवारी पर हैं जहां हमें हमेशा एक साथी की आवश्यकता होती है और हम उस साथ से कटे होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।
छोटी छोटी बातों पर असहमति
कठिन परिस्थितियों में कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं और इसके लिए किसी को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। कभी-कभी जीवन बहुत ही कठोर हो जाता है, और हमें भी मुश्किलों का सामना करने के लिए कठोर होना ही पड़ता है।
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चाहे बात किसी चीज पर असहमति की हो या सहमति की, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आपके द्वारा लिए गए सभी फैसले आपके साथी को भी पसंद हों। ऐसे में, जब राय नहीं मिलती, तो मतभेद हो जाते हैं और यही मतभेद नाजायज रिश्तों को जन्म देते हैं।
यह बहुत ही सामान्य है, अगर मुझे एक जगह से कोई चीज नहीं मिल रही है, तो मैं उसे दूसरी जगह से पाने की कोशिश करूंगा।
आर्थिक स्थिति
हम भौतिकवाद से भरी दुनिया में रहते हैं और इन भौतिक चीज़ों को खरीदने के लिए धन की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पैसा आज संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में, हमारे वित्तीय संकट के समय हमें जो भी मदद मिलती है, हमारा उसकी तरफ झुकाव हो जाना सामान्य है। अगर आर्थिक मदद के साथ वह शख्स हमें मानसिक सहारा भी दे दे, तो यह सोने पर सुहागा वाली बात है। उसका लकीर से बाहर जाना तय है।
अत्यधिक अधिकार और सुरक्षा की भावना
एक हद तक अधिकार और सुरक्षा की भावना जरूरी भी होती है। लेकिन, अगर हम हद से ज्यादा स्वामित्व और सुरक्षा करने की कोशिश करने लग जाएं, तो यह बुरे रिश्तों की नीव रखने जैसे हो जाता है। ईर्ष्या, अति-स्वामित्व, अधिक सुरक्षा, संदेह जैसी भावनाएं, रिश्तों को और बिगाड़ देती हैं।
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अगर किसी भी इंसान के चरित्र और ईमानदारी पर प्रश्न उठाया जाता है, तो उसके द्वारा कभी-कभी आवेश में आकर गलत कदम उठा लेना स्वाभाविक होता है। उदाहरणतः, अगर आप किसी को दिन में 10 बार फोन करेंगे, तो उसका आपके प्रति गुस्सा और अविश्वास बढ़ना तय है। मैंने कई ऐसे मामले देखे हैं, जहाँ पति या पत्नी को अपने साथी के काम करने वाले लोगों से भी ऐतराज होने लगता है। आसान शब्दों में कहा जाए, तो सामान्य और असामान्य स्वामित्व एवं सुरक्षा में अंतर सीखना होगा।
असुरक्षा और वासना
पति हो या पत्नी, युवा हो या बूढ़े; हम सभी ज़िन्दगी में कभी न कभी असुरक्षित महसूस करते हैं और हम चाहते हैं कि हम पर ध्यान दिया जाए। ऐसे में, अगर कोई शख्स प्यार के दो मीठे बोल कह दे या फिर कोई खुशामद पूर्ण बात हमें कह दे, तो हमारा फिसलना लगभग पक्का होता है।
अक्सर देखा जाता है कि दो लोगों की लड़ाई में फायदा कोई तीसरा उठा लेता है। जाहिर है, जब आप अपनी सीमा से बाहर जाते हैं, तो आपको इसकी भारी कीमत देनी पड़ती है।
क्या इस विषय में आपका कोई प्रश्न हैं ? हमारे विशेषज्ञ से ज़रूर पूंछे।
शादीशुदा जोड़ों के नाजायज संबंधों के पीछे ये कुछ कारण हैं। मैं किसी ऐसे रिश्ते में बने रहने का समर्थन नहीं करता, जिसके ठीक होने का कोई आसार ही नही है। लेकिन, अगर समस्या का हल है, तो हमें दहलीज पार करने से पहले एक बार सोच लेना चाहिए।
“नाजायज” शब्द कुछ क्षणों के लिए अच्छा लग सकता है, लेकिन केवल कुछ दिनों के बाद आप समझ जाते हैं कि यह शब्द कितना घटिया है। इस शब्द की वजह से आपको न केवल अतिरिक्त तनाव, मानहानि, और परेशानी का सामना करना पड़ता है, बल्कि अंत में, आपको ही एक नाजायज रिश्ते की तरह देखा जाता है।